आँख से कभी किसी का काजल नहीं माँगा करते रूठ जाते हैं तो फिर उनसे "आँचल" नहीं माँगा करते.....!
Friday 2 August 2013
Thursday 25 July 2013
तू गया कहाँ एक नया पैगाम ले के आ
होंठो पे मय का एक नया जाम ले के आ
कदम तेरे डगमगा जीवन का रूप बयां करें
करूँ मै क्या करूँ यहाँ करे तू क्या करे
मै घर से बहुत दूर मुसीबत में फसा हूँ
पिता से अपने आज तो कुछ दाम ले के आ
दाढ़ी नहीं बनाई है कई रोज से मैंने
कोई तो अपने साथ मे हज्जाम ले के आ
देखा है जब से तुमको बड़ा सर मे दर्द है
जालिम तू आज साथ झंडू बाम ले के आ
-अंकित पटेल "आँचल"
होंठो पे मय का एक नया जाम ले के आ
कदम तेरे डगमगा जीवन का रूप बयां करें
करूँ मै क्या करूँ यहाँ करे तू क्या करे
मै घर से बहुत दूर मुसीबत में फसा हूँ
पिता से अपने आज तो कुछ दाम ले के आ
दाढ़ी नहीं बनाई है कई रोज से मैंने
कोई तो अपने साथ मे हज्जाम ले के आ
देखा है जब से तुमको बड़ा सर मे दर्द है
जालिम तू आज साथ झंडू बाम ले के आ
-अंकित पटेल "आँचल"
Saturday 25 May 2013
Friday 24 May 2013
मुझे अपनी कसम अब याद है मुझे उसकी कसम भी याद है
मै न भूलूं वो मन याद है मै न भूलूं वो तन याद है
उसके बातो की उलझन याद है उसके होंठो की छुवन याद है
उसके हाथो का कंगन याद है उसके पायल की रुनझुन याद है
उसका रातों में जागना याद है मुझको मेरा वो सजना याद है
अभी उसके ख्याल याद हैं मुझे उसके सवाल याद हैं
वो फूलों का हार याद है मुझे उसका सृंगार याद है
उसके आँखों का काजल याद है उसके केशों का बादल याद है
मै जीता था जिसके लिए तब अभी मुझको वो पागल याद है
-अंकित पटेल "आँचल"
मै न भूलूं वो मन याद है मै न भूलूं वो तन याद है
उसके बातो की उलझन याद है उसके होंठो की छुवन याद है
उसके हाथो का कंगन याद है उसके पायल की रुनझुन याद है
उसका रातों में जागना याद है मुझको मेरा वो सजना याद है
अभी उसके ख्याल याद हैं मुझे उसके सवाल याद हैं
वो फूलों का हार याद है मुझे उसका सृंगार याद है
उसके आँखों का काजल याद है उसके केशों का बादल याद है
मै जीता था जिसके लिए तब अभी मुझको वो पागल याद है
-अंकित पटेल "आँचल"
"मुझको रातों की अंगड़ैया यूँ सताती रहीं
राज जीवन का मेरे वो बतातीं रहीं
कैसे कह दूँ की कैसे कटी ज़िन्दगी
मासूम बिटिया पे ये कैसी दरिंदगी
कोख से ही उजड़ गया जिसके सपनो का सागर
अधूरी ही रह गयी प्यासी वो गागर
वो भी कभी एक घर को बसाती
किसी के घर वो मंदिर बनाती
अंकित कैसे हैं लोग ये कैसे दीवाने
बेटियों के हुनर को ये फिर भी न जाने
दरिंदो की देखो जरा ये दरिंदगी
छीना इन्होने बिटिया की जिंदगी
मिलकर हम सबको कसम है यह खानी
बेटियों पर करना जरा इतनी मेहरबानी
जागे हम खुद यहाँ जगाएं समाज को
दिखाएँ यहाँ सभी बेटियों के राज को
फिर बिटिया को दे एक नयी जिंदगानी
बेटियों पर करना जरा इतनी................"
Saturday 11 May 2013
बालश्रम (एक बच्चे का दर्द)
मित्रों मैं जो बताने जा रहा हूँ उसकी भूमिका बहुत ज्यादा नहीं बहुत छोटी सी है या यूँ समझ लीजिये शिक्षा के इस आँगन में होने के पश्चात मेरी ज़िम्मेदारी है एक सफ़र के दौरान एक छोटे बच्चे को ट्रेन में गुटखा बेचते हुए पाया और उससे बात करने बाद उसके परिवार के दर्द को पंक्तियों में उतारने की कोशिश किया है अगर मेरी कोशिश कुछ हद तक सही हो तो आशीर्वाद दें ताकि आगे बढ़ने में सफलता मिले !!
माँ बाप जिन्हें मिल जाते उनको मिल जाती खुशियाँ
पढ़ने के दिन थे जब वो बेच रहा था पुड़िया
बेच उसने श्रम अपना बेच अपना जीवन
जाने कहाँ चला गया उसका वो बीता सारा बचपन
मैंने उसको देखा मेरी भी आँखे भर आयीं
मानो लगे मुझे जैसे सारी उम्र यु हीं कुम्हलाई
इतना निर्मम इतना निष्ठुर तू क्या इन्साफ करेगा (भगवान के लिए)
जिसका बचपन बीता ट्रेनों में वो क्या तुझको माफ़ करेगा
"गहरा नीला आकाश, आकाश समेटे बाहों में
कुछ पैसे मिल जाते है चलती फिरती राहों में
कैसे कटता है दिन, रात यहाँ उससे पूछे
कट रही जिंदगी अब उसकी दर्द भरी कराहों में"
-अंकित पटेल "आँचल"
माँ बाप जिन्हें मिल जाते उनको मिल जाती खुशियाँ
पढ़ने के दिन थे जब वो बेच रहा था पुड़िया
बेच उसने श्रम अपना बेच अपना जीवन
जाने कहाँ चला गया उसका वो बीता सारा बचपन
मैंने उसको देखा मेरी भी आँखे भर आयीं
मानो लगे मुझे जैसे सारी उम्र यु हीं कुम्हलाई
इतना निर्मम इतना निष्ठुर तू क्या इन्साफ करेगा (भगवान के लिए)
जिसका बचपन बीता ट्रेनों में वो क्या तुझको माफ़ करेगा
खेल खिलौनों वाली दुनिया उसकी तब बेकार हुयी
बचपन की वो पाठशाला उसकी तब बाजार हुयी "गहरा नीला आकाश, आकाश समेटे बाहों में
कुछ पैसे मिल जाते है चलती फिरती राहों में
कैसे कटता है दिन, रात यहाँ उससे पूछे
कट रही जिंदगी अब उसकी दर्द भरी कराहों में"
-अंकित पटेल "आँचल"
Friday 10 May 2013
मै सीखा हूँ कुछ खो के यहाँ, मै पाया हूँ कुछ रो के यहाँ
ये खोने और पाने की मेरी अजब कहानी है
जो लिखते लिखते आ जाये वो मेरी अश्रु जुबानी है
कुछ अपनों का यहाँ प्यार मिला एक छोटा सा परिवार मिला
जो कभी नहीं मिल पाया मुझको आज वही अधिकार मिला
जिसके खातिर अम्मा से मै लड़ जाता था कभी कभी
आके आज यहाँ मुझको आखिर वही दुलार मिला
दुनिया की इस रामायण को मैंने भी खूब गाया है
नासमझो को इस दुनिया में मैंने भी खूब समझाया है
फिर भी आखिर मुझे यहाँ पीड़ा और दुत्कार मिला
कुछ अपनों का यहाँ प्यार मिला एक छोटा..........
-अंकित पटेल 'आँचल'
Monday 6 May 2013
"प्यार दिया है सबको मैंने सदा रहा मै वंचित
मलाल रहा उन हर्फो का जिनमे मै था अंकित
मैंने उसको देखा जबसे देखी उसकी आंखे
हर बार जेहन मे आकर तड़पाती उसकी बातें
वो बसंत की ऋतु हो या हो गर्मी का मौसम
हर बार याद आ जाती उसकी कोंपल उसकी साखें
धरती देखे ऊपर को नीचे देखे बादल
उसके आंखो की सोभा हो जाता काला काजल
वो इतनी सुंदर इतनी प्यारी कि गाता फिरता है ये पागल
नहीं मिला पल भर के लिए फिर भी उसका "आँचल"
- अंकित पटेल "आँचल"
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