Friday 2 August 2013

"समंदर की गहराई को भाँप नहीं सकते
दरिया कितना लंबा है आंक नहीं सकते
मतलब की दुनिया है मत देखो इसको यारों
किसके दिल में क्या है झांक नहीं सकते"
-अंकित पटेल "आँचल"



Thursday 25 July 2013

"तुम्हे छूकर मौसम भी सुहाना हो गया होगा
खुदा भी देखकर तुमको दिवाना हो गया होगा
 तुम्हारा नाम लेकर मन्दिरोँ मे आरती जब भी हुयी 
वो सरगम श्रष्टि का पहला तराना हो गया होगा"
अंकित पटेल "आँचल"


चंहु ओर दीवारों पर तेरा नाम नहीं होता
कुछ किए बिना कोई बदनाम नहीं होता
उस पल ही रुक जाती राहें तेरे जीवन की
गर उसकी उन बातों मे ये मुकाम नहीं होता
- अंकित पटेल "आँचल"
चेहरे की रंगत देखी है जोगी की संगत देखी है
जो कभी नहीं पा पाया मैंने उसकी मन्नत देखी है
तुम मानो या ना मानो लेकिन सच है मेरे साथी
तेरी जुल्फों के साये मे हमने जन्नत देखी है 
-अंकित पटेल "आँचल"
तू गया कहाँ एक नया पैगाम ले के आ 
होंठो पे मय का एक नया जाम ले के आ 
कदम तेरे डगमगा जीवन का रूप बयां करें
करूँ मै क्या करूँ यहाँ करे तू क्या करे
मै घर से बहुत दूर मुसीबत में फसा हूँ 
पिता से अपने आज तो कुछ दाम ले के आ
दाढ़ी नहीं बनाई है कई रोज से मैंने 
कोई तो अपने साथ मे हज्जाम ले के आ
देखा है जब से तुमको बड़ा सर मे दर्द है 
जालिम तू आज साथ झंडू बाम ले के आ
-अंकित पटेल "आँचल"

Saturday 25 May 2013

ज़िन्दगी को ज़िन्दगी के पैमाने याद होते
गुजर गए जो शहीदों के वो ज़माने याद होते
सेंकते है नेता सियासत पर अपनी रोटियां
वतन की आन पर जो मर मिटे वो दीवाने याद होते 

Friday 24 May 2013

मीठी सी हवा ने मौसम को यूँ सुहाना कर दिया
उसी की याद ने मुझे इस कदर दीवाना कर दिया
कल तक जिसको मै अपने हाथों की लकीर कहता रहा
उसी लकीर ने आकर आज मुझे यहाँ बेगाना कर दिया
-अंकित पटेल "आँचल'
मिला है प्यार मुझको नहीं फिक्र है ज़माने की
कोशिश तो खूब रही उनकी मुझे आजमाने की
वो खुद ही जल गया किसी के आगोश में
जैसे शमाँ ने ले ली हो जान परवाने की
-अंकित पटेल "आँचल"
बड़ों के साथ चला उनकी दुवाएं लेकर
थोडा सा पानी लेके थोड़ी सी हवाएं लेकर
कितनी खूबसूरत है आज भी दुनिया
एक नयी राह पर चल पड़ा लोगों की वफायें लेकर
-अंकित पटेल "आँचल"



मुझे अपनी कसम अब याद है मुझे उसकी कसम भी याद है
मै न भूलूं वो मन याद है मै न भूलूं वो तन याद है
उसके बातो की उलझन याद है उसके होंठो की छुवन याद है
उसके हाथो का कंगन याद है उसके पायल की रुनझुन याद है
उसका रातों में जागना याद है मुझको मेरा वो सजना याद है
अभी उसके ख्याल याद हैं मुझे उसके सवाल याद हैं
वो फूलों का हार याद है मुझे उसका सृंगार याद है
उसके आँखों का काजल याद है उसके केशों का बादल याद है
मै जीता था जिसके लिए तब अभी मुझको वो पागल याद है
-अंकित पटेल "आँचल" 



"मुझको रातों की अंगड़ैया यूँ सताती रहीं
राज जीवन का मेरे वो बतातीं रहीं
कैसे कह दूँ की कैसे कटी ज़िन्दगी
मासूम बिटिया पे ये कैसी दरिंदगी
कोख से ही उजड़ गया जिसके सपनो का सागर
अधूरी ही रह गयी प्यासी वो गागर
वो भी कभी एक घर को बसाती
किसी के घर वो मंदिर बनाती
अंकित कैसे हैं लोग ये कैसे दीवाने
बेटियों के हुनर को ये फिर भी न जाने
दरिंदो की देखो जरा ये दरिंदगी
छीना इन्होने बिटिया की जिंदगी
मिलकर हम सबको कसम है यह खानी
बेटियों पर करना जरा इतनी मेहरबानी
जागे हम खुद यहाँ जगाएं समाज को
दिखाएँ यहाँ सभी बेटियों के राज को
फिर बिटिया को दे एक नयी जिंदगानी
बेटियों पर करना जरा इतनी................"

Saturday 11 May 2013

बालश्रम (एक बच्चे का दर्द)

मित्रों मैं जो बताने जा रहा हूँ उसकी भूमिका बहुत ज्यादा नहीं बहुत छोटी सी है या यूँ समझ लीजिये शिक्षा के इस आँगन में होने के पश्चात मेरी ज़िम्मेदारी है एक सफ़र के दौरान एक छोटे बच्चे को ट्रेन में गुटखा बेचते हुए पाया और उससे बात करने बाद उसके परिवार के दर्द को पंक्तियों में उतारने की कोशिश किया है अगर मेरी कोशिश कुछ हद तक सही हो तो आशीर्वाद दें ताकि आगे बढ़ने में सफलता मिले !!
माँ बाप जिन्हें मिल जाते उनको मिल जाती खुशियाँ
पढ़ने के दिन थे जब वो बेच रहा था पुड़िया
बेच उसने श्रम अपना बेच अपना जीवन
जाने कहाँ चला गया उसका वो बीता सारा बचपन
मैंने उसको देखा मेरी भी आँखे भर आयीं
मानो लगे मुझे जैसे सारी उम्र यु हीं कुम्हलाई
इतना निर्मम इतना निष्ठुर तू क्या इन्साफ करेगा (भगवान के लिए)
जिसका बचपन बीता ट्रेनों में वो क्या तुझको माफ़ करेगा
खेल खिलौनों वाली दुनिया उसकी तब बेकार हुयी
बचपन की वो पाठशाला उसकी तब बाजार हुयी
"गहरा नीला आकाश, आकाश समेटे बाहों में
कुछ पैसे मिल जाते है चलती फिरती राहों में
कैसे कटता है दिन, रात यहाँ उससे पूछे
कट रही जिंदगी अब उसकी दर्द भरी कराहों में"
-अंकित पटेल "आँचल"

Friday 10 May 2013


मै सीखा हूँ कुछ खो के यहाँ, मै पाया हूँ कुछ रो के यहाँ
ये खोने और पाने की मेरी अजब कहानी है
जो लिखते लिखते आ जाये वो मेरी अश्रु जुबानी है
कुछ अपनों का यहाँ प्यार मिला एक छोटा सा परिवार मिला
जो कभी नहीं मिल पाया मुझको आज वही अधिकार मिला
जिसके खातिर अम्मा से मै लड़ जाता था कभी कभी
आके आज यहाँ मुझको आखिर वही दुलार मिला
दुनिया की इस रामायण को मैंने भी खूब गाया है
नासमझो को इस दुनिया में मैंने भी खूब समझाया है
फिर भी आखिर मुझे यहाँ पीड़ा और दुत्कार मिला
कुछ अपनों का यहाँ प्यार मिला एक छोटा..........
-अंकित पटेल 'आँचल'

Monday 6 May 2013


"कुछ अनकहे सवालो का हल ढूंदता हूँ मैं
गुजर गया है जो वो कल ढूंद्ता हूँ मैं
कितने सपने देखे थे उसकी बांहों में सोकर
कब लौट के आएगा वो पल ढूंद्ता हूँ मै"
- अंकित पटेल 'आँचल'

"प्यार दिया है सबको मैंने सदा रहा मै वंचित
मलाल रहा उन हर्फो का जिनमे मै था अंकित
मैंने उसको देखा जबसे देखी उसकी आंखे
हर बार जेहन मे आकर तड़पाती उसकी बातें
वो बसंत की ऋतु हो या हो गर्मी का मौसम
हर बार याद आ जाती उसकी कोंपल उसकी साखें
धरती देखे ऊपर को नीचे देखे बादल
उसके आंखो की सोभा हो जाता काला काजल
वो इतनी सुंदर इतनी प्यारी कि गाता फिरता है ये पागल
नहीं मिला पल भर के लिए फिर भी उसका "आँचल"
- अंकित पटेल "आँचल"
उड़ानों मे हवाएँ ही सदा काम आती हैं, गरीबों की दुआएं ही सदा काम आती हैं, मै हूँ यहाँ , ये आप सब की ही इनायत है, मोहब्बत में वफाएँ ही सदा काम आती हैं।
                                                                                           -- अंकित पटेल "आँचल"
इतनी है खामोस बेचैनी सारी रात जगाती है, पल-पल उसकी याद जेहन में आती है फिर जाती है, याद करूँ की भूल मै जाऊ कोई आके मुझे बताये, प्रीत की रीत बड़ी ही पागल सारी उम्र सताती है।
                                                                                                        --अंकित पटेल "आँचल"
मैं हूँ पागल राही मुझको रस्तों में ना ढूंढा कर, मिलना है तो आजा मेरे सपनों मे आकर मिल, प्यार मेरा तुझको दीवाना कर देगा हर पल, पानी मांगे मेघों से जैसे जलता सारा जंगल।
                                                                                                         --अंकित पटेल "आँचल"