"मुझको रातों की अंगड़ैया यूँ सताती रहीं
राज जीवन का मेरे वो बतातीं रहीं
कैसे कह दूँ की कैसे कटी ज़िन्दगी
मासूम बिटिया पे ये कैसी दरिंदगी
कोख से ही उजड़ गया जिसके सपनो का सागर
अधूरी ही रह गयी प्यासी वो गागर
वो भी कभी एक घर को बसाती
किसी के घर वो मंदिर बनाती
अंकित कैसे हैं लोग ये कैसे दीवाने
बेटियों के हुनर को ये फिर भी न जाने
दरिंदो की देखो जरा ये दरिंदगी
छीना इन्होने बिटिया की जिंदगी
मिलकर हम सबको कसम है यह खानी
बेटियों पर करना जरा इतनी मेहरबानी
जागे हम खुद यहाँ जगाएं समाज को
दिखाएँ यहाँ सभी बेटियों के राज को
फिर बिटिया को दे एक नयी जिंदगानी
बेटियों पर करना जरा इतनी................"